★ नारी ★
रमेश कुमार द्विवेदी 'चंचल'
नख ते सिख लौं जेहि शील भरे
ममता कर खान विधान है नारी।।
ममत्व भरा रग रग जेहिके अस
सीख मिली जिनगी भर सारी।।
शैशव माँहि ते कर्मधजी अरू
पाई युवा करछुल भय खारी।।
आज्ञा सुनैं अरू काज करै,
नाहि चलै कबहूँ मनभारी ।।
श्रम केरी बदौलत रानी बनी
अरू तेही प्रभाऊ ते जात बखानी।।
आजु की बेटी का काव लिखी
सब क्षेत्रनु ताहि प्रभाव समानी।।
काल जौ आदि कै बात लिखी
कैकेयी रही हिय राजन रानी।।
युद्ध भवा जब दानव मानव
सुमेलि के आँगुरि भाव बखानी।।
आई विजय श्री कोशल राज
गुण जात नही वहि रानी बखानी।।
राज प्रसार कै भाव बढ़ा जबु
मनुबाई फिरंगिनु भाव नसानी।।
छोटनु देश जौ भाव कुभाव
तौ आई तबैं इन्दिरा महरानी।।
छक्के छुड़ाए विरोधिनु कै जब
लीन्ही शपथ संविधान सयानी।।
पुरूष बना विद्वान जबै, तौ
मैत्रेयी बड़ी गुणखानी।।
हाँक बढ़ी जबु राजकुमारी तौ
पंडित ला कालीदास सिरानी।।
नाम गनी विद्योत्तमा रतना
जाहि गढ़े लेखनि वरदानी।।
एक गढ़े कालीदास कवी,अरू
दूजे मँहय तुलसीदास निशानी।।
नारिनु मोह प्रभाऊ ते बाँधत
जे नर होत निरा अभिमानी।।
वदन निहारि बँधे विश्वामित्र
जब आय मिली मेनका वरदानी।
समझाय थकीं जेहि रानी मन्दोदरि,
ज्ञानी त्रिकाल जौ बात न मानी।।
चंचल नाश भयी नगरी जेहि,
स्वर्णनु धातु जे बात नसानी।।
त्रिया चरित्र हौं काव लिखी,
जब बाँधि लये जेहि अवढरदानी।।
याहि हुते ही नस्यो महिषासुर,
नारि प्रभाऊ न जात बखानी।।
आशुकवि
रमेश कुमार द्विवेदी 'चंचल'
ओमनगर, सुलतानपुर,
उ.प्र.228001