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एगो समय रहे जब फगुआ में लोग........

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अजोधा में श्री भागवान....
✍🏻बिजेन्द्र कुमार तिवारी

एगो समय रहे जब फगुआ में लोग........

 लुप्त हो रहल बा उ परंपरा! एगो समय रहल जब बसंत पंचमी के देव स्थान पर गाँव के बुढ़, जावान, लइका, सेयान सभे फगुआ गावे बिटोराय। केहु काढ़ावे (शुरुआत करे)
 ... सुमिरि ले श्री भगवान आहे लाला
.... जेहि सुमिरत सब काम बनतु है,
सुमिरि ले....
केहु जोड़ा लागावे..
गाया में सुमिरि गजाधर नाथ के....
अजोधा में श्री भगवान.. आहे लाला...
  गँवई भाषा में ओकरा के ताल ठोकल कहल जात रहे। जेकर जेकर घर ओह स्थान के नजदीक रहे, उ सभ लोग गड़ी छोहाड़ा बतासा... आदि के बेवस्था करत रहे। ताल ठोकइला के बाद लोग आपना आपना दुआरी पर फगुआ गावावे खातिर आग्रह करे। सभ लोग सारधा से खाना-पिना कइला के बाद प्रेम से फगुआ गावे जात रहे। ना कवनो लोभ, ना कवनो स्वार्थ, ना कवनो भेदभाव। सम्हत फुँकाये के बेरा गाँव के बड़ बुजुर्ग लोग फगुआ गावे आ नवहा लोग लुकाड़ी, बमगोला भांजत सिवान घेरे। पुरनिया सभ के मनाही रहे, आपन सिवान टपे के नइखे, साबका सम्मान के रक्षा करे के बा।
       फगुआ के दिने सभे प्रेम से उत्सव मनावे। पुआ पूड़ी.... बने। सभे रंग अबीर गुलाल.. लगावे। गांव के जिम्मेवार लोग साँझ के बेरा ढोलक झाल के साथे देव स्थान से फगुआ गावत हर दरवाजा पर पहुँचत रहे। गाँव के लोग भी ओह मण्डली के स्वागत में पलक बिछवले रहत रहे। अगर गलती से कोई छूट जाय त उ ओह मण्डली के सबसे जिम्मेदार सदस्य से ओरहन देत रहे। ओह परम्परा में पावन प्रेम, सदाचार, सदव्यवहार के साथे समाज के हर वर्ग के जोड़े के सार्थक प्रयास रहे। 
       आज ना जाने कावना मुदई के नजर लाग गइल, कि इ सब खतम होत जाता। दुआरी दुआरी त दूर, देवता किहाँ भी बड़ा मुश्किल से पाँच ताल फगुआ होता। कवनो कवनो गाँव में त ई रिवाजे उठ गइल बा।
        आज फगुआ मांस खाये, शराब पिये आ दिखावा तक ही सीमित रह गइल बा। तनी सोंची सभे। नशा नाश के जड़ ह। अधिकांश लोग एकरा चपेट में आ गइल बा। मांस मदिरा के प्रभाव एतना बढ़‌‌‌ गइल कि लोग परम्परा के परवाह ना करके, आपना सुविधा के अनुसार फगुआ मानावता। हमरा लागता रंग आ गुलाल औपचारिकता मात्र रह गइल बा। प्रेम के जगह दिखावा आ छलावा जादा हो गइल बा। एह में पुरानका विवाद भूले जइसन कवनो बात नइखे रह गइल।
          सुनले रहीं कि शहर में केहू के केहू से लगाव ना होला। अब ई बुराई त गाँव- देहात में भी आ गइल बा। आज गाँव के प्रेम, भाईचारा, संस्कार..., नफरत, घृणा, नशा.. जइसन सुरसा के आहार बनत जा रहल बा। हम गाँव के लइका, सेयान, बुढ़, जवान साभका से चिरउरी (निहोरा) करब कि स्वार्थ से ऊपर उठके आगे आईं। एह बिखरत समाज के जोड़े खातिर पुरनिया के बनावल परम्परा के पुनर्जिवित कर के समाज के कुरीति वाला राक्षस के भगाईं। आवे वाला पीढ़ी राउर आभारी रही।
 एही निहोरा के साथे राउर:- बिजेन्द्र कुमार तिवारी (बिजेन्दर बाबू) ग्राम गैरतपुर, मांझी, जिला-सारण, बिहार, मोबाइल: 7250299200

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