ए जाजमानी तहरा सोने के काँवाड़ी.....
ए जाजमानी तहरा सोने के काँवाड़ी, दुगो फूस दऽ..... बसंत पंचमी के दिन से इ अवाज गाँव के गली-गली में गूँजत रहे। इहे कहत लइकन के टोली दुआरी-दुआरी जाके पुआरा, पेटार्ही, चिपरी, गोंइठा भा लकड़ी मांग के , एक दूसरा के सहयोग से बटोरत सम्हत गोसाईं में डाल के, पाँच भाँवर घुमके आ मउज में कुदत फानत आपना-आपना घरे जात रहलें सऽ। जजमान शब्द से घर के मालिक के सम्बोधन होत रहे।
लइकन के टोली इ पंक्ति के सस्वर बोलत उमंग में जेकरा दुआरी पहुँचे, ओकरा चेहरा पर आननंदयी मुस्कान झलके लागे। यजमान के घर से ढोंड्ही, पेटार्ही भा गोइठा मिलते सब बच्चा आननंद मनावत कहत रहलें ;- ' एह पार पकड़ी ओह पार बर, बनल रहो जजमानी के घर...,' राउर जै जै हो। इ सुनके सभे आशीर्वाद देव।
हालांकि ओह चीज से कवनो लइकन के व्यक्तिगत फायदा ना रहे। फिर भी जे जलावन खातिर कवनो चीज ना देवे ओकरा के ओरहन देत लइका कहऽ सऽ:- नदी के तीरा पर फेर ककरी, तोहरा दुअरिया पर छेर बकरी। बोलऽ हई रे हई रे हई हा...
सम्हत बड़ होखो एह खातिर काँट-कुश भा जंगली घास काट के सम्हत में डालत रहे लोग। एह काम में बिना भेद-भाव के सभी जाति धरम के लोग मिलके आनन्द लेत रहे। सम्हत फुँकाये के बेरा सभे बिटोरात रहे। गाँव के पुरनिया लोग पास के देव स्थान पर फगुआ गावस। फगुआ (होली) के दिने दुआरी दुआरी जाके फगुआ गावाय। लोग गड़ी छोहाड़ा बतासा ... आदि के साथे अबीर लगा के मण्डली के स्वागत करत रहे।
इ भोजपुरियन के एकता के एगो अनोखा संदेश रहे। आज भौतिकता के होड़ में बैमनस्वता एतना बढ़ गइल बा कि इ प्रेम के संदेश देवेवाला पावन परम्परा लगभग खतम हो गइल बा। आईं हमनी सभन मिलके एकरा के पुनर्जिवित कइल जाव।
✍️बिजेन्द्र कुमार तिवारी
बिजेन्दर बाबू
7250299200

