◆ होइहें अंजोर : बिजेन्द्र कुमार तिवारी ◆
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कहिया दिन पलटिहें,
होई हामरा घरे भोर।
बोलऽ ए भगजोगनी,
कबले होइहें अँजोर।।
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तू तऽ भगजोगनी से,
भइलू मरकरी।
बोलऽ बोलऽ भाग के हामरा,
बलब कबले जरी।।
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चारु ओरिया होखे लागल ,
अजबे अजबे शोर।
बोलऽ ए भगजोगनी...
कबले होइहें अँजोर।।
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भारी भरकम बड़ूवे हामरा,
करनी के ओजन।
मन करे बन जइति,
हमहूँ हैलोजेन।।
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हामरा ए अंन्हरिये में,
मिलता आराम।
दुनिया से हामरा बा,
बोलऽ कवन काम।।
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बाकी....,
भइल मोर पालानी वाला
पिलवो अँखफोर।
बोल ए भगजोगनी
कबले होइहें अँजोर।।
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जुलूमी के राजे
रोजगार भइल ठंढ़ा।
लागता कि रहे पड़ी
जिनगि भर बंडा।।
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सबकुछ बिकाइल जाय,
फइले महंगाई।
ठंढा से खोंसी मरल
दावा बिनु माई।।
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सभे बा ताबाह अइसन
बर दिहलू जोर।
बोल ए भगजोगनी
कबले होइहें अँजोर।।
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पह फाटी सगरो जे
जागी सब लोग।
तब बोलऽ फेर का
लगइबू कवन जोग।।
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खूब भरमइलू काम
भइल सब आकाज।
घोर के पी गइलू,
शरम हाया लाज।।
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कहेलें बिजेन्दर
तू ईमान राखऽ थोर।
बोलऽ ए भगजोगनी
कबले होइहें अँजोर।।
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