★ गइल बचपना ★
गइल बचपना
आइल जवानी
सुन ल तू आपन
कहानी ।
जोन मज्जा उठा
लेल बचपन में
उ अब कबों ना
मिली कोउनो
जिनगी में ?
बचपन बीतते
बिआह हो जाई
जिनगी के बोझा
कँधा पर आई
तब
कोउनो हित मीत
कामें ना अइहें
खुदें ढोवै के होइ ।
बोझ ढोतें ढोते
उमरिया बीत जाइ
जब आई बुढापा
तब केहु ना पूछी
सब करहिये सन
आपन मनमानी।
जौंन सुख भोग
लेल बचपन में
उ अब कबों ना
भेटाई !
रचना
अजय सिंह अजनवी
छपरा