◆ बट गायन ◆
चलऽसखी यमुना तीरे
पांव धरऽ धीरे धीरे
कि आरे सखिया रे !
चलत यमुनावा डगर डेरावेला ये राम।
हमनी के छोड़ी गइलें
नि ठूर कन्हइया भइलें
कि आरे सखिया रे!
केही संग योगिया योग रमावेला ये राम।
के फोड़ी गगरी डगरी
पोंछी लोर नजरी नजरी
कि आरे सखिया रे!
विरहा के अगिया बदन जरावेला ये राम।
मन मधुवनवां सुना
सावन सतावे दुना
कि आरे सखिया रे!
प्रीतिऽके पीड़ा जिया डहंकावेला ये राम।
प्रेमवा के पाठ पढ़वलें
ज्ञानऽके सनेश पेठवलें
ज्ञान के गरुड़ उधो के मिटावेला ये राम।
के हरि सखि मोरि पीरऽ
धरे ना हीं मनवा धीरऽ
कि आरे सखिया रे!
सिसकत सेजरिया कुहूकावेला ये राम।
गावे लें राकेश गीतऽ
श्याम सखियन के मीतऽ
कि आरे सखिया रे!
वन-उपवन चलते रिगावेला ये राम
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रचना: राजनाथ सिंह राकेश
राजनाथ सिंह राकेश
टेघरा
छपरा बिहार
