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वाह जी वाह : बिजेन्दर बाबू

भोजपुरी रोजाना 0

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◆   बिजेन्दर बाबू   ◆


घोघा शंख के हँसेला देखऽ, 

हँसे हंस के काग।

नकभेभन चकमक के हँसस, 

अइसन बनल समाज।।


कउआ हंस से कहलें सुनऽ, 

हम तोहसे गुणवान।

केहु उचारे कागा, 

नहीं करे तोहर बखान।।


दब के रहऽ, कहल मानऽ, 

हाजिरी रोज बजाव।

गोर देह के जन तू आपना, 

हम पे आकड़ जमावऽ।।


हँसले हंस ठठा के कहलें, 

उत्तम कुल तोहार।

उत्तम भोजन करेल, 

बड़ूवे रूप रंग मजेदार।।


तोहरा आगे मोल ना हमरो, 

हंस हार के कहलें।

भीतर-भीतर क्रोध से भइया, 

खुद के जारत रहलें।।


दूसर बात सुनाईं, 

सुनऽ घोंघा शंख के खिसा।

घोंघा शंख से कहलें, 

तूहूँ बीस-बीस हम बीसा।।


सकल-सूरत बा तोहरे जइसन, 

लेकिन गुण बा ढेर।

मानऽ हार गुजर बा तबहीं, 

करऽ तनिक ना देर।।


अंग-अंग में गुण बा हमरो, 

सब कुछ कामे आवे।

खाली पूजा पाठ में तोहके, 

दोसर लोग बजावे।।


तू गुणहीन गोर चमड़ी पर, 

खाली करऽ गुमान 

हमरा रुतबा से तू हूँ, 

बड़ऽ अबले अंजान।।


सुलहा मने दब के रहऽ, 

हुकुम रोज बजावऽ।

अपना रूप गुण के इहावांँ 

रुतबा मत दरशावऽ।।


शंख मने मुस्का के कहलें, 

तू हउव खानदानी।

तोहरा रुतबा के आगा हम, 

कइसे करब मनमानी।।


बतकुचन सब छोड़ के भगलें, 

मनलें आपन हार।

भीतर खीसे जरत रहलें, 

चललें देहिया झार।।


तिसर कथा सुनाईं भइया, 

बा सबसे मजेदार।

नकभेभन चकमक दुलहा के, 

इज्जत देस उतार।।


तू गरीब भिखमंगा बाड़ऽ 

हम रानी खानदानी।

केतनों करऽ उपाय चलब हम, 

आपन सीना तानी।।


चकमक इज्जत खातिर भइया 

आपन देह छोड़ावस ।

बस अपना के हीन देखा के, 

उनके बड़ बतावस।।


मुंह बा बसिया भात के जइसन 

देह सड़ल जस आलू।

गोड़ के रोआँ अइसे करिया, 

जइसे हो बन भालू।।


सगुन तू नइहर के खाते, 

भले मोर अपसगुन।

जिनगी के कुंडली में हमसे, 

मिलल ना एको गुण।।


हम तोहरा से बात करब का, 

तू लङ्हा खानदानी।

तोहरा कुल के रति-गति के, 

कइसे राज बखानी।।


हाथ छोड़ा के चकमक रोवत, 

बस माथा के ठोके।

पुरखन के गलती के कइसे, 

ले चली हम ढोके।।


जान बचाके भगलें चकमक, 

छोड़लें सुख के आस।

एकरा साथे चैन मिली ना, 

हो गईल विश्वास।।


इहे सगरो चलाता हमरो 

टूटत भड़ूवे आस।

कौवा हँसस हंस के घोंघा 

करस शंख उपहास।।


नकभेभन ना रूप निहारस, 

फन पे रौब जमावेली।

संस्कार बिन जियस जिनगी, 

सज्जन के धमकावेली।।


इ सब देख के सुनऽ बिजेन्दर, 

काँपत देह हमार।

पोर-पोर में भरल गुण भी, 

लागेला बेकार।।


कबले शंख डेरइहें, 

कबले घोंघा राज चलइहें।

नकभेभन रानी बन कबले, 

दोसर के भरमइहें।।


अइसे बात बढ़ी तऽ सुन लऽ, 

होई ना कल्याण 

जाहवाँ अइसे होई उहावाँ, 

हो जाई वीरान।।


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बिजेन्द्र कुमार तिवारी

बिजेंदर बाबू

संपादक (साहित्य)

भोजपुरी रोजाना

पता :  गैरतपुर, मांझी 

सारण, बिहार

          मोबाइल नंबर:- 7250299200

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