💐लोककाव्य 💐
●● भोजपुरी कविता ●●
आई रावण जारी जा!
सम्राट पंकज, आरा (बिहार)
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आइल फेर से परब दशहरा
आइ रावण जारी जा !
मन के भितरा छुपल दशानन
पहिले ओके मारी जा !
एक मुखडा प दश मुखौटा
ना केहू पहचान करें
राम बने सबके सोझा पर
रावण के सब काम करें
झांकी अपने मन के भीतरा
अपना के पहचानी जा !
मन के भितरा छुपल दशानन
पहिले ओके मारी जा
दसों इन्द्रियां के वश में कइके
विजयादशमी पर्व मनाई जा !
काम क्रोध मद लोभ के चारों
अपना मन से दूर भगाई जा !
माथ प नाचे चढ़ि घमंड जे
ओकरा के नीचे उतारी जा !
मन के भितरा छुपल दशानन
पहिले ओके मारी जा !
पूजा पाठ बस करें दिखावा
नीयत के ना साफ रखे
पर धन नारी लगे पियारी
बयमानी के जाप जपे
राम ना कतहीं खोजले मिलिहे
रावण के सभे पुजारी बा
मन के भीतरा छुपल दशानन
पहिले ओके मारी जा !
आइल फेर से परब दशहरा
आइ रावण जारी जा !
मन के भीतरा छुपल दशानन
पहिले ओके मारी जा !
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